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सेंसेक्स में इन्वेस्ट करने की रणनीति: रिस्क मैनेजमेंट साथ रिटर्न अधिकतम कैसे करें

Created :  Author :  Samco Securities Category :  , Basics of stock market, Everything about Investing

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इस लेख में, हम चर्चा करेंगे

एस एंड पी बीएसई सेंसेक्स, भारत के शेयर मार्केट में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) के परफॉर्मेंस का इंडिकेटर है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति का प्रमुख इंडिकेटर है और शेयर मार्केट में इस इंडेक्स पर सबसे अधिक नज़र होती है। सेंसेक्स फायदेमंद इन्वेस्टमेंट हो सकता है, लेकिन इसमें बहुत रिस्क होता है। इसलिए, अपने रिस्क को कम करते हुए इन्वेस्टमेंट का अधिकतम फायदा उठाने के लिए, एक ठोस योजना की ज़रूरत होती है। इस आर्टिकल का उद्देश्य है सेंसेक्स इन्वेस्टमेंट के जुड़ी हर बात के बारे में आपको जानकारी देना। इन्वेस्टमेंट के विभिन्न विकल्प, लॉस को कम करते हुए प्रॉफिट अधिक से अधिक करने के तरीके और ख़ास किस्म की दिक्कतों आदि पर चर्चा की जाएगी। जिन तरीकों की यहां चर्चा की गई है उन पर अमल किया जा सकता है, और आर्टिकल में विभिन्न सफल सेंसेक्स इन्वेस्टर की केस स्टडी को शामिल किया गया है ताकि यह बताया जा सके कि ऐसा कैसे किया जाता है।

सेंसेक्स और उसकी परफॉर्मेंस की जानकारी

सेंसेक्स की शुरुआत 1 जनवरी, 1986 को 100 के बेसवैल्यू के साथ हुई थी। इसमें बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में सबसे अधिक सक्रिय रूप से ट्रेड करने वाली 30 इक्विटी शामिल हैं। इन स्टॉक को मार्केट कैपिटलाइज़ेशन, लिक्विडिटी और ट्रेडिंग वॉल्यूम के आधार पर चुना जाता है। सेंसेक्स के कम्पोज़िशन को नियमित रूप से रिवाइज़ किया जाता है ताकि यह कि यह मार्केट की मौजूदा परिस्थितियों का उचित प्रतिनिधित्व करे।

सेंसेक्स के प्रमुख परफॉर्मेंस इंडिकेटर (केपीआई) का इस्तेमाल इसके परफॉर्मेंस के आकलन के लिए किया जाता है। सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले केपीआई हैं, इंडेक्स लेवल, डेली चेंज, परसेंटेज चेंज और मार्केट कैपिटलाइज़ेशन। इंडेक्स लेवल, सेंसेक्स के करेंट वैल्यू को ज़ाहिर करता है, जबकि डेली चेंज और परसेंटेज चेंज एक निश्चित अवधि में इंडेक्स के वैल्यू में बढ़ोतरी या गिरावट दिखाता है। दूसरी ओर, मार्केट कैपिटलाइज़ेशन, इंडेक्स के सभी शेयरों की कुल वैल्यू है।

आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक फैक्टर सहित विभिन्न प्रकार के फैक्टर सेंसेक्स के परफॉर्मेंस को प्रभावित करते हैं। ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट की वृद्धि, इन्फ्लेशन, इंटरेस्ट रेट और कॉर्पोरेट अर्निंग जैसे आर्थिक फैक्टर सेंसेक्स के परफॉर्मेंस पर महत्वपूर्ण असर डाल सकते हैं। सरकारी नीतियां, चुनाव और वैश्विक घटनाएं जैसे राजनीतिक फैक्टर भी इंडेक्स के परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकते हैं। कंज़्यूमर बिहेवियर में बदलाव, डेमोग्राफिक ट्रेंड और सांस्कृतिक स्तर बदलाव जैसे सामाजिक फैक्टर भी सेंसेक्स के परफॉर्मेंस को प्रभावित कर सकते हैं। हाल में आई कोविड-19 महामारी का सेंसेक्स के परफॉर्मेंस पर काफी असर हुआ, जिससे मार्केट में ख़ासी वोलैटिलिटी आई है। इन्वेस्टर को इन फैक्टर को समझने की ज़रूरत है और यह भी कि वे सेंसेक्स के परफॉर्मेंस को कैसे प्रभावित कर सकते हैं ताकि वे इन्वेस्टमेंट के बारे में सोच-समझ कर फैसला कर सकें। प्रमुख परफॉर्मेंस इंडिकेटर पर नज़र और मार्केट की ताज़ा-तरीन ख़बरों की जानकारी रखने से इन्वेस्टर को सेंसेक्स के परफॉर्मेंस को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और सोच-समझ कर इन्वेस्टमेंट के बारे में फैसला करने में मदद मिल सकती है।

सेंसेक्स इन्वेस्टमेंट की रणनीतियां

इन्वेस्टर रिस्क मैनेजमेंट करते हुए अपने रिटर्न को अधिकतम करने के लिए सेंसेक्स में इन्वेस्टमेंट की विभिन्न रणनीतियों का इस्तेमाल करते हैं। यह रही तीन प्राथमिक प्रकार की सेंसेक्स इन्वेस्टमेंट रणनीतियां:

1. फंडामेंटल एनालिसिस

फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी की इंट्रिज़िक वैल्यू को निर्धारित करने के लिए वित्तीय और आर्थिक डाटा का विश्लेषण किया जाता है। इसके तहत यह माना जाता है कि किसी कंपनी के शेयर की कीमत उसके बिज़नेस फंडामेंटल, जैसे अर्निंग, रेवेन्यू, कैश फ्लो और एसेट पर आधारित होती है। फंडामेंटल एनालिसिस में कंपनी के वित्तीय स्थिति, वृद्धि की संभावना और मार्केट की स्थिति को तय करने के लिए कंपनी के फिनांशियल स्टेटमेंट, अर्निंग रिपोर्ट और अन्य मार्केट डाटा पर शोध करना शामिल है।

2. टेक्निकल एनालिसिस

टेक्निकल एनालिसिस, ट्रेंड और पैटर्न की पहचान करने के लिए स्टॉक की कीमत और मार्केट डाटा का विश्लेषण करने का एक तरीका है। इसमें मार्केट डाटा का विश्लेषण करने और ट्रेडिंग के संभावित मौकों की पहचान करने के लिए चार्ट, ग्राफ़ और अन्य टूल का इस्तेमाल शामिल है। टेक्निकल एनालिसिस इस विचार पर आधारित हैं कि मार्केट के ट्रेंड और पैटर्न, स्टॉक की कीमत निर्धारित करते हैं और इन ट्रेंड और पैटर्न का इस्तेमाल भविष्य के वैल्यू मूवमेंट की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है।

3. क्वांटिटेटिव एनालिसिस

क्वांटिटेटिव एनालिसिस में मार्केट डाटा का विश्लेषण करने और ट्रेडिंग के संभावित के मौकों की पहचान करने के लिए स्टैटिस्टिकल मॉडल और मैथमेटिकल एल्गोरिदम का इस्तेमाल होता है। इसमें बड़ी मात्रा में मार्केट डाटा का विश्लेषण करने और आम तौर पर न दिखने वाले पैटर्न और ट्रेंड की पहचान करने के लिए जटिल एल्गोरिदम और मॉडल का इस्तेमाल होता है।

अधिक से अधिक रिटर्न और रिस्क मैनेजमेंट के बेहतरीन तरीके

शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करना फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह जोखिम भरा भी हो सकता है। इन्वेस्टर को रिस्क मैनेजमेंट के साथ रिटर्न को अधिक से अधिक करने के लिए मार्केट के उतार-चढ़ाव से निपटने के सबसे बेहतर तरीके अपनाने चाहिए। रिटर्न बढ़ाने करने और रिस्क मैनेजमेंट के लिए यहां कुछ बेहतरीन तरीके दिए गए हैं:

1. डायवर्सिफिकेशन

डायवर्सिफिकेशन में विभिन्न सेक्टर, भौगोलिक दायरे और एसेट क्लास के विभिन्न प्रकार के शेयरों में इन्वेस्ट किया जाता है। डायवर्सिफिकेशन से कई एसेट में इन्वेस्टमेंट फैलाकर पोर्टफोलियो के रिस्क को कम करने में मदद मिलती है। जब किसी एसेट क्लास या सेक्टर का परफॉर्मेंस खराब होता है, तो पोर्टफोलियो के अन्य एसेट उन नुकसानों की भरपाई करने में मदद कर सकते हैं।

2. डायवर्सिफिकेशन के लिए रणनीति

3. रिस्क मैनेजमेंट

रिस्क मैनेजमेंट के तरह रिस्क की पहचान, इसका आकलन और नियंत्रण करने किया जाता है। इन्वेस्टर को अपने इन्वेस्टमेंट से जुड़े रिस्क को समझने और उन्हें कम करने के उपाय करने की ज़रूरत है। रिस्क मैनेजमेंट रणनीतियों के डायवर्सिफिकेशन में स्टॉप-लॉस ऑर्डर सेट करना, ऑप्शन या फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जैसी हेजिंग रणनीतियों का इस्तेमाल करना शामिल हो सकता है।

रिस्क मैनेजमेंट की रणनीति

4. लॉन्ग टर्म नज़रिया

शेयर मार्केट में इन्वेस्टमेंट के लिए लॉन्ग टर्म नज़रिए की ज़रूरत होती है। शॉर्ट टर्म में शेयर वोलेटाइल हो सकते हैं, लेकिन उनसे बांड या कैश जैसे अन्य एसेट क्लास की तुलना में लॉन्ग टर्म में ज़्यादा रिटर्न मिलता है। इन्वेस्टर को लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट का तरीका अपनाना चाहिए और मार्केट में शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव के आधार पर बार-बार ट्रेडिंग करने की इच्छा पर लगाम लगाना चाहिए।

निष्कर्ष

इस तरह, सेंसेक्स में इन्वेस्ट करते समय रिस्क मैनेजमेंट करते हुए रिटर्न बढ़ाने के लिए इन्वेस्टमेंट की ठोस रणनीति का होना महत्वपूर्ण है। इस आर्टिकल में इन्वेस्टमेंट की विभिन्न किस्म की रणनीतियों की चर्चा की गई है, जिनमें फंडामेंटल एनालिसिस, टेक्निकल एनालिसिस और क्वांटिटेटिव एनालिसिस शामिल हैं, साथ ही डायवर्सिफिकेशन, रिस्क मैनेजमेंट, लॉन्ग टर्म नज़रिया, अनुशासन और धैर्य बनाए रखना शामिल हैं। हालांकि, इन्वेस्टमेंट की रणनीति बनाना और उसे लागू करना मुश्किल हो सकता है, खासकर नौसिखियों के लिए। ऐसी स्थति में सैमको, जैसा जाना-माना ट्रेडिंग ऐप इन्वेस्टर को अपने फिनांशियल लक्ष्य हासिल करने में मदद कर सकता है। सैमको इन्वेस्टर को सोच-समझ कर इन्वेस्टमेंट फैसला करने और अपने इन्वेस्टमेंट को आसानी से मैनेज करने में मदद करने के लिए गई तरह के तरीके और संसाधन मुहैया कराता है। यहां इन्वेस्टर को समय से रहने के लिए अडवांस किस्म के ट्रेडिंग टूल, मार्केट रिसर्च और एक्सपर्ट एडवाइस मिल सकती है।